02-03-92  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

महाशिवरात्रि मनाना अर्थात् प्रतिज्ञा करना, व्रत लेना और बलि चढ़ना

ज्योति बिन्दु शिव बाबा ज्योति बिन्दु सालिग्रामों प्रति बोले :

आज दिव्य महाज्योति बाप अपने ज्योतिबिन्दु बच्चों से मिल रहे हैं। बापदादा भी महान ज्योति हैं और आप बच्चे भी महान ज्योति स्वरूप हो। तो दिव्य ज्योति बाप दिव्य ज्योति आत्माओं से मिल रहे हैं। यह महान ज्योति कितनी प्यारी और न्यारी है! बापदादा हर एक के मस्तक के बीच चमकती हुई ज्योति को देख रहे हैं। कितना दिव्य और प्यारा नज़ारा है। चमकते हुए रूहानी सितारों का कितना अच्छा संगठन देख रहे हैं। इस रूहानी ज्योतिर्मय सितारों का मण्डल अलौकिक और अति सुन्दर है। आप सभी भी इस दिव्य तारा मण्डल में अपना चमकता हुआ बिन्दु स्वरूप देख रहे हो? यही महाशिवरात्रि है। शिव ज्योति के साथ आप अनेक ज्योतिबिन्दु सालिग्राम हो। बाप भी महान, बच्चे भी महान हैं। इसलिए महाशिवरात्रि गाई जा रही है। कितनी श्रेष्ठ भाग्यवान आत्माएं हो! जो चैतन्य साकार स्वरूप में शिव बाप के साथ शिवरात्रि मना रहे हो। ऐसे कभी संकल्प में, स्वप्न में भी नहीं सोचते थे कि ऐसी अलौकिक शिवरात्रि मनाने वाले हम सालिग्राम आत्माएं हैं। आप सब चैतन्य रूप में मनाते हो। उसका ही यादगार अब भक्तों द्वारा ज़ड-चतत्र में चैतन्य भावना से मनाने का देख रहे हो। सच्चे भक्त चित्र में भावना से, भावना स्वरूप अनुभव करते और आप सालि-ग्राम आत्माएं सम्मुख मनाने वाली हो। तो कितना भाग्य है! पद्म, अरब, खरब यह भी आपके भाग्य के सामने कुछ नहीं है। इसलिए सभी बच्चे निश्चय के फलक से कहते हैं - हमने देखा, हमने पाया। यह गीत सभी का है या कोई-कोई का है? सभी गाते हैं ना? वा यह गाते हो कि देख लेंगे, पा लेंगे? पा लिया है वा पाना है? डबल विदेशी क्या समझते हैं पा लिया है? बापको देखा भी है ना? दिल से कहते हो कि बाप को देखा है, पाया है। देखना और पाना तो क्या लेकिन बाप को अपना बना लिया है। बाप आपको हो गया है ना। देखो, आपको बाप हो गया तब तो आपके कहने से बाप आ जाते है ना। तो अधिकारी बन गये ना।

महाशिवरात्रि की क्या विशेषताएं हैं? एक तो बाप के आगे प्रतिज्ञा करते हैं और दूसरा बाप के प्यार में व्रत रखते हैं। क्योंकि प्यार और खुशी में सब भूल जाते हैं इसलिए व्रत रखते हैं। खुशी की खुराक खा लेते तो दूसरी खुराक की आवश्यकता नहीं होती है। मिलन की खुशी के कारण व्रत रखते हैं। व्रत खुशी की भी निशानी है और व्रत रखना अर्थात् प्यार में त्याग-भावना। कुछ छोड़ना अर्थात् त्याग भावना की निशानी है। तीसरी बात - शिवरात्रि अर्थात् बलि चढ़ना। यादगार रूप में तो स्थूल बलि चढ़ाते हैं लेकिन होना, मन, बुद्धि और सम्बन्ध से समर्पित होना - यह है वास्तविक बलि चढ़ना। तो ये तीनों ही विशेषताएं महाशिवरात्रि की विशेषताएं हैं। शिवरात्रि मनाना अर्थात् यह तीनों विशेषताएं प्रैक्टिकल जीवन में लाना। सिर्फ कहना नहीं लेकिन करना। कहना और करना सदा समान हो। बापदादा ने बच्चों की खुशखबारी का समाचार भी सुना कि चाहे भारत के बच्चों ने, चाहे डबल विदेशी बच्चों ने, सभी ने महाशिवरात्रि का प्रैक्टिकल स्वरूप प्रतिज्ञा की है। तो प्रतिज्ञा अर्थात् कहना और करना दोनों समान। बहुत अच्छी बात है - सभी ने पहले बापदादा को सबसे बड़े ते बड़ा बर्थ डे का गिफ्ट प्रतिज्ञा अर्थात् श्रेष्ठ संकल्प का दिया है। तो बापदादा भी सभी बच्चों के गिफ्ट की थैंक्स दे रहे हैं। गिफ्ट में दी हुई प्रतिज्ञा सदा स्मृति से समर्थ बनाती रहेगी। पहले से ही यह नहीं सोचो कि प्रतिज्ञा करते तो हैं लेकिन पता नहीं चल सकें या नहीं! निभा सकें या नहीं निभा सकें! यह सोचना अर्थात् कमज़ोरी को आह्वाहन करना। तो कमज़ोरी अर्थात् माया तो जब स्वयं ही आह्वाहन कर रहे हो तो वह कमज़ोरी पहले ही तैयार रहती है आने के लिए। यह ता आप उसको निमन्त्रण दे रहे हो। इसलिए कोई भी संकल्प वा कर्म करते हो तो समर्थ स्थिति में स्थित हो समर्थी से करो। कम-ज़ोर संकल्प मिक्स नहीं करो। यह श्रेष्ठ संकल्प रखो कि हिम्मत हमारी, अटेन्शन हमारा और मदद बाप की है ही है। इस विधि से प्रतिज्ञा प्रैक्टिकल में लाने में बहुत सहज अनुभव करेंगे। सदैव यह सोचो अनेक कल्प की विजयी आत्मा मैं हूँ। विजय की खुशी, विजय का नशा शक्तिशाली बना देगा। विजय आप ब्राह्मण आत्माओं के लिए सदा साथी बन बंधी हुई है और कहाँ जायेगी? सिवाए पाण्डवों के, विजय ने किस को साथ दिया? वही पाण्डव हो ना! जब बाप साथी है तो विजय भी आपकी साथी है। सदा अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ ही है यह देखो। जो प्रभु के गले का हार बन गये, उनकी हार कभी हो नहीं सकती। सम्पूर्ण विजयी के रूप में अपना यादगार विजय माला देख रहे हो ना? ऐसे तो गायन नहीं है ना - विजय और हार माला है! नहीं, विजय माला है। विजयी मणके तो आप हो ना! तो विजयी माला के मणके कभी हार नहीं खा सकते। हर एक ने जो संकल्प किया बाप-दादा ने सारी सीन देखी। अच्छे उमंग-उत्साह से, खुशी-खुशी से प्रतिज्ञा ली है। और आप चैतन्य सालिग्रामों ने प्रतिज्ञा ली है इस-लिए तो भक्त भी उसका यादगारा मनाते रहते हैं। (तपस्या के संबंध से कल सभी ने 56 वीं शिव जयन्ती पर 56 प्रतिज्ञायें की हैं।)

बलि चढ़ चुके। बलि चढ़ना अर्थात् महाबलवान बनना। बलि किसकी चढ़ाते हैं? कमज़ोरियों की। जब कमज़ोरियों की बलि चढ़ा दी तो क्या बन गये? महाबलवान। सबसे बड़ी कमज़ोरी है देह अभिमान। देह-भान समर्पित करना अर्थात् उनके वंश को भी सम-ार्पित किया। क्योंकि देह-अभिमान का सूक्ष्म वंश बहुत बड़ा है। अनेक प्रकार के छोटे बड़े देह-भान है। तो देह-भान की बलि चढ़ाना अर्थात् वंश सहित समर्पित होना। अंश भी नहीं रखना। अंशमात्र भी अगर रह गया तो बार-बार चुम्बक की तरह खींचता रहेगा। आपको पता भी नहीं पड़ेगा। न चाहते भी चुम्बक अपने तरफ खींच लेगा। ऐसे नहीं समझना - ऐसे कोई समाय के लिए यह देह अभिमान का कोई प्रकार काम में लाने के लिए किनारा करके रखें। फिर क्या कहते हैं - इसके बिना काम नहीं चलता। काम चलता है लेकिन थोड़े समय की विजय दिखाई देती है। अभिमान को स्वमान समझ लेते हो। लेकिन इस अल्पकाल की विजय में बहुत काल की हार समायी हुई है। और जिसको थोड़े समय की हार समझते हो वो सदा काल की विजय प्राप्त कराती है। इसलिए देह अभिमान के अंशमात्र सहित समर्पित हो - इसको कहा जाता है शिव बाप के ऊपर बलि चढ़ना अर्थात् महाबलवान बनना। ऐसी शिवरात्रि मनाई है ना? यह व्रत धारण करना है। वे लोग तो स्थूल चीजों का व्रत रखते हैं लेकिन आप क्या व्रत लेते हो? श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा यह व्रत लेते हो कि सदा कमज़ोर वृत्ति को मिटाए,शुभ और श्रेष्ठ वृत्ति धारण करेंगे। जब वृत्ति में श्रेष्ठता है तो सृष्टि श्रेष्ठ ही नज़र आयेगी। क्योंकि वृत्ति से दृष्टि और कृति का कनेक्शन है। कोई भी अच्छी वा बुरी बात पहले वृत्ति में धारण होती है फिर वाणी और कर्म में आती है। वृत्ति श्रेष्ठ होना अर्थात् वाणी और कर्म स्वतः श्रेष्ठ होना। आपकी विशेष सेवा विश्व-परिवर्तन की भी शुभ वृत्ति से है। वृत्ति से वायब्रेशन, वायुमण्डल बनाते हो। तो श्रेष्ठ वृत्ति का यह व्रत धारण करना - यही शिवरात्रि मनाना है। यह तो सुन लिया ना कि मनाना अर्थात् बनना, कहना अर्थात् करना। जो सिद्धि प्राप्त आत्मायें होती हैं जिसको लोगों की भाषा में सिद्ध पुरूष कहा जाता है और आप कहेंगे सिद्धि स्वरूप आत्मा - तो उन्हों क हर संकल्प अपने प्रति या दूसरों के प्रति जो भी करते हैं वह कर्म में सिद्ध हो जाते हैं, जो बोल बोलते है वह सिद्ध हो जाता है। जिसको कहते हैं सत-वचन। तो सबसे बड़े ते बड़ी सिद्धि स्वरूप आत्माएं आप हो ना। तो संकल्प और बोल सिद्ध होंगे ना, सिद्ध होना अर्थत सफल होना। प्रत्यक्ष स्वरूप में आना यह है सिद्ध होना। तो सदैव यह स्मृति में रखो कि हम सभी सिद्धि स्वरूप आत्माएं हैं। हम सिद्धि स्वरूप आत्माओं का हर संकल्प, बोल, हर कर्म स्वयं को वा सर्व को सिद्धि प्राप्त होने वाला हो। व्यर्थ नहीं। कहा और किया तो सिद्ध हुआ। कहा, सोचा और किया नहीं तो वह व्यर्थ गया। कई ऐसे सोचते हैं कि हमारे संकल्प बहुत अच्छे चलते हैं, बहुत अच्छे-अच्छे विचार उमंग आते हैं, अपने प्रति या सेवा के प्रति, लेकिन संकल्प तक ही रह जाते हैं। प्रैक्टिकल कर्म में, स्वरूप में नहीं आते है। तो इसको क्या कहेंगे? संकल्प बहुत अच्छे है लेकिन कर्म में अन्तर क्यों? इसका कारण क्या है? अगर बीज बहुत अच्छा है लेकिन फल अच्छा नहीं निकले तो क्या कहेंगे? धरनी या परहेज की कमी है। ऐसे ही संकल्प रूपी बीज अच्छा है। बापदादा के पास संकल्प पहुँचते हैं। बापदादा भी खुश होते हैं - बहुत अच्छा बीज बोया है, बहुत अच्छा संकल्प किया है, अभी फल मिला कि मिला। लेकिन होता क्या है? दृढ़ धारण की धरनी की कमी और बार-बार अटेन्शन के परहेज की कमी। बापदादा हँसी का खेल देखते रहते हैं। जैसे बच्चे लोगे गैस का गुब्बारा उड़ाते हैं ना, बहुत अच्छी गैस भरकर उड़ाते हैं और खुश होते हैं, गुब्बारा ऊपर गया, बहुत अच्छा उड़ रहा है। लेकिन चलते-चलते नीचे आ जाता है। तो कभी भी पुरूषार्थ में निराश नहीं बनो। करना ही है, होना ही है, विजय माला मेरा ही यादगार है। निराश होकर यह नहीं सोचो अच्छा कर लेंगे, देख लेंगे। नहीं, कल तो क्या अभी करना ही है। अगर निराशा को कुछ सेकेण्ड वा मिनट भी अपने अन्दर स्थान दिया तो फिर वह सहज जाने वाली नहीं है। उसको भी ब्राह्मण आत्माओं के पास मजा आता है। इसलिए निराश कभी नहीं बनो। अभिमान भी नहीं, निराशा भी नहीं। कोई अभिमान में आ जाते हैं, कोई निराशा में आ जाते हैं। यह दोनों महाबलवान बनने नहीं देते हैं। जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान की फीलिंग भी ज्यादा आती है। कभी अभिमान में, कभी अपमान में - दोनों से खेलते रहते हैं। जहाँ अभिमान नहीं होगा उसको अपमान भी अपमान नहीं लगेगा। वह सदा निर्मान और निर्माण के कार्य में बिज़ी रहेगा। जो निर्मान होता है वही निर्माण कर सकता है। तो शिवरात्रि मनाना अर्थात् निर्मान बन निर्माण करने के कर्तव्य में लगना। समझा!

तो आज सभी अपने दिल पर श्रेष्ठ संकल्प की डोरी द्वारा विजय का झण्डा लहराओ। यह झण्डा लहराना ब्राह्मणों की सेवा की रसम है, विधि है। लेकिन साथ-साथ सदा विजय का झण्डा लहराता रहे। कोई भी दु:ख की बात होती है तो झण्डा नीचे कर देते हैं लेकिन आपका झण्डा कभी नीचे नहीं हो सकता। सदा ऊंचा। तो ऐसा झण्डा लहरायेंगे ना?

अच्छा - तपस्या वर्ष की रिजल्ट भी मिली। सभी ने अपना-अपना जज बनकर अपने को नम्बर दिया। अच्छा किया। मैजारिटी चारों ओर की रिजल्ट से यह दिखाई दिया क इस तपस्य वर्ष ने सबको स्व के पुरूषार्थ के प्रति अटेन्शन अच्छा खिंचवाया है। जब अटेन्शन गया तो टेन्शन भी चला ही जायेगा ना! तो टोटल रिजल्ट कईयों की अच्छी रही है। सेकेण्ड नम्बर मेजोरिटी है। थर्ड भी है लेकिन फर्स्ट और चौथा नम्बर कम है। सेकेण्ड नम्बर के हिसाब से फर्स्ट और फोर्थ कम हैं। बाकी सेकेण्ड और थर्ड ये मैजारिटी है और बापदादा एक बात पर विशेष खुश है कि सभी ने इस तपस्या वर्ष को महत्व दिया है। इसलिए पेपर आये हैं लेकिन मैजारिटी अच्छे रूप से पास हो गये। यह संकल्प जो रखा कि तपस्या करनी है - इस संकल्प की समर्थी ने सहयोग दिया है। इसलिए रिजल्ट अच्छी है, खराब नहीं है। मुबारक हो। बाकी अब प्राइज़ तो दादियाँ देंगी, बाप ने सबको बहुत-अच्छे, बहुत-अच्छे की प्राइज दे दी। ऐसे नहीं कि तपस्या वर्ष पूरा हो गया, अभी अलबेले बन जाये। नहीं, और बड़ी प्राइज़ लेनी है। सुनाया ना - कर्म और योग के बैलेन्स की प्राइज़ लेनी है, सेवा और तपस्या के बैलेन्स की ब्लेसिंग अनुभव करनी है और निमित्त मात्र प्राइज़ लेनी है। सच्ची प्राइज़ तो बाप और परिवार की ब्लैसिंग की प्राइज़ है। वह तो सबको मिल रही है।

अच्छा - आज सूक्ष्म वतन बनाया है। अच्छा है - वायुमण्डल अच्छा बना है। उस ज्योति देश के आगे तो यह सजा हुआ सूक्ष्म वतन मॉडल ही लगता है ना। फिर भी बच्चें का उमंग और उत्साह वायुमण्डल वृत्ति को खींचता जरूर है। सभी सूक्ष्म वतन में बैठे हो? साकार शरीर में रहते मन से सूक्ष्मवतन वासी बन मिलन मनाओ। बापदादा को खुशी है कि बच्चों को सूक्ष्म वतन इतना प्यारा लगता है। तभी तो बनाया है ना। बहुत अच्छी मेहनत करके बनाया है और प्यार से बनाया है, श्रेष्ठ उमंग उत्साह के संकल्प से बनाया है। इसलिए बापदादा संकल्प करने वालों को, साकार में लाने वालों को सभी को मुबारक देते हैं। यह भी बेहद के खेल में खेल है, और क्या खेल करेंगे, यही खेल करेंगे ना। कभी स्वर्ग बनायेंगे, कभी सूक्ष्म वतन बनायेंगे। यह बुद्धि को खींचता है।

अच्छा - चारों ओर के सर्व ज्योतिबिन्दु सालिग्रामों को बाप के दिव्य जन्म वा बच्चों के दिव्य जन्म वा बच्चों के दिव्य जन्म की मुबारक हो। ऐसे सर्वश्रेष्ठ सदा सिद्धि स्वरूप आत्माओं को, सदा दिव्य चमकते हुए सितारों को, सदा अभिमान और अपमान से न्यारे रहने वाले स्वमान में स्थित रहने वाली आत्माओं को, सदा श्रेष्ठ पुरूषार्थ और श्रेष्ठ सेवा के उत्साह-उमंग की श्रेष्ठ आशाओं के दीपक जगाने वाली आत्माओं को, सदा अपने दिल पर विजय का झण्डा लहराने वाली शिवमयी शक्ति सेना को, सदा पुरूषार्थ में सफलता सहज अनुभव करने वाले सफलता स्वरूप बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

56 वीं शिवजयन्ती पर बापदादा ने ध्वज फहराते हुए सर्व बच्चों को बधाई दी।

सदा विश्व में बाप और विजयी बच्चों को यह सुख-शान्ति देने वाला झण्डा लहराता रहेगा। चारों ओर शिव बाप और शिव शक्तियों की रूहानी सेना का यह नाम बाला होता रहेगा। यह महान, ऊंचा झण्डा विश्व को सदा लहराता हुआ दिखाई देगा। यह अविनाशी झण्डा, अविनाशी बाप और अविनाशी श्रेष्ठ आत्माओं का यादगार है। तो सदा खुशी की लहरों से, खुशी का झण्डा, बाप के नाम बाला करने का झण्डा, बाप को प्रत्यक्ष करने का झण्डा लहरा रहे हो, लहराते रहेंगे। ऐसे महाशिवरात्रि पर आप सभी बच्चों को और चारों ओर के सर्व ब्राह्मण विशेष आत्माओं को बहुत-बहुत बर्थ डे की मुबारक और यादप्यार।